इतना ही बहुत है कि ये बारूद है मुझ में अँगारा-नुमा शख़्स भी मौजूद है मुझ में पोरों से निकल आई है इक बर्फ़ की टहनी ऐ दोस्त यही आतिश-ए-नमरूद है मुझ में हर गेंद के पीछे कोई आता है हमेशा ये कौन से बच्चे की उछल-कूद है मुझ में गाली नहीं अच्छी तो तुम्हें पेश करूँ क्या इक और भी जुमला सुख़न-आलूद है मुझ में मैं देखता रहता हूँ कि वो खिड़की है ख़ाली ता-हाल यही रौनक़-ए-बे-सूद है मुझ में यूँही तो नहीं लोग गुज़रते मिरे दिल से लगता है कोई मंज़िल-ए-मक़्सूद है मुझ में