इतना करम कि अज़्म रहे हौसला रहे इस दिल के साथ दर्द का रिश्ता सदा रहे अपनी अना के साथ जिए कज-अदा रहे अब इस का क्या मलाल कि बे-दस्त-ओ-पा रहे ख़ुद-साख़्ता ख़ुदाओं का मुझ को नहीं है ख़ौफ़ तेरी नवाज़िशों का बस इक सिलसिला रहे आदाब-ए-दोस्ती से तो वाक़िफ़ कभी न थे तहज़ीब-ए-दुश्मनी से भी ना-आश्ना रहे ये भी हमारे दौर का इक अलमिया ही है रहने को साथ साथ रहे पर जुदा रहे