इतना तो करम मुझ पर अल्लाह तू फ़रमा दे दुनिया को मोहब्बत की ख़ुशबू से तू महका दे पाबंद-ए-सलासिल क्यों दीवाने को करता है दीवाने के क़दमों को अब वुसअ'त-ए-सहरा दे दामान-ए-तलब अपना इतना न कुशादा कर देना हो जिसे सोचे दे इस को तो क्या क्या दे साक़ी की निगाहों की मस्ती मुझे काफ़ी है अल्लाह मुझे फिर क्यों फ़िक्र-ए-मय-ओ-मीना दे वो सोज़-ओ-गुदाज़-ए-दिल अब हम में कहाँ बाक़ी जो रूह को तड़पा दे जो क़ल्ब को गरमा दे का'बे में तुझे ढूँडूँ या दैर-ओ-कलीसा में पाऊँ मैं कहाँ तुझ को अब कुछ तो इशारे दे दिल राहत-ए-साहिल का क़ाइल ही नहीं 'वसफ़ी' देना है अगर मुझ को तो शोरिश-ए-दरिया दे