सूरत है तेरी दिल में ये नक़्श-ओ-निगार कर परवानों में ऐ शम्अ मुझे भी शुमार कर आएँगे दिन मिलन के भले इंतिज़ार कर दिल को न यूँ ऐ वहशत-ए-ग़म बे-क़रार कर तक़दीर कह रही है मगर अब पुकार कर क़िस्मत में वो नहीं तिरी सब्र-ओ-क़रार कर रस्म-ए-वफ़ा तू प्यार के सब इख़्तियार कर यूँ जी के ज़िंदगी को ऐ दिल यादगार कर तू इश्क़ के जुनूँ में गरेबाँ न तार कर इज़्ज़त का कुछ लिहाज़ तो अपनी ऐ यार कर क़ुर्बानी कुछ भी प्यार है माँगे अगर ऐ दिल ईसार दे तो प्यार को कुछ न विचार कर ख़ुद के लिए न जी हैं तक़ाज़े भी प्यार के नाम-ए-वफ़ा को न तू कभी दाग़-दार कर उस ने मिटाया ख़ुद को किसी और के लिए जाता है दूसरे की वो बिगड़ी सँवार कर क़ुर्बानी है अज़ीम जो सोचे ज़रा ये गर देखो गया वो जीती हुई बाज़ी हार कर माथे पे है शिकन न हैं आसार-ए-ग़म अयाँ क्या शान से चला शब-ए-ग़म वो गुज़ार कर मुश्किल है चाह गर हो ज़ियादा भी हद से ये ऐ दिल कभी न इतना किसी को दुलार कर हैं रंज तेरे ग़म के अलावा जहाँ में और ऐ दिल तू उन का भी तो कभी कुछ वक़ार कर समरा तरक़्क़ियों का न पाए हैं लोग चंद जो क़ौम के लिए जिए सब कुछ निसार कर लम्बा है क़िस्सा जान-ए-वफ़ा का ऐ 'सौदागर' दिलचस्प है बयान में कुछ इख़्तिसार कर