इतने अच्छे हो कि बस तौबा भली तुम तो ऐसे हो कि बस तौबा भली रस्म-ए-इश्क़-ए-ग़ैर और मैं ये भी ख़ूब ऐसी कहते हो कि बस तौबा भली मेरी मय-नोशी पे साक़ी कह उठा इतनी पीते हो कि बस तौबा भली वक़्त-ए-आख़िर और ये क़ौल-ए-वफ़ा दम वो देते हो कि बस तौबा भली ग़ैर की बात अपने ऊपर ले गए ऐसी समझे हो कि बस तौबा भली मैं भी ऐसा हूँ कि ख़ालिक़ की पनाह तुम भी ऐसे हो कि बस तौबा भली कहते हैं 'मुज़्तर' वो मुझ को देख कर यूँ तड़पते हो कि बस तौबा भली