नुक़ूश-ए-रहगुज़र-ए-शौक़ सब मिटा देना रही है जाँ सो उसे भी कहीं गँवा देना रह-ए-हयात में हर मोड़ पर है इक उलझन बिछड़ न जाऊँ कहीं दोस्तो सदा देना ग़ुबार-ए-वक़्त ने धुँदला दिए हैं इस के नुक़ूश ज़रा चराग़-ए-मोहब्बत की लौ बढ़ा देना सुना है शहर में फिर आ गया है वो क़ातिल मिले तो दोस्तो मेरा पता बता देना तलब तो करना मिरी उम्र-ए-राएगाँ का हिसाब हिसाब तूल-ए-शब-ए-हिज्र का चुका देना