इतनी ख़राब सूरत-ए-हालात भी नहीं जो कह न पाऊँ ऐसी कोई बात भी नहीं सूरज का गाँव जिस की जटाओं में थी असीर ऐ शहर-ए-बे-चराग़ ये वो रात भी नहीं फिर आज उठ रहा है धुआँ दल के आस-पास तज्दीद-ए-आर्ज़ू-ए-मुलाक़ात भी नहीं डरता हूँ अपने साए से में ख़ुद-गज़ीदा हूँ सीने में कोई शोरिश-ए-ज़ुल्मात भी नहीं 'फ़ारूक़'-नाज़ुकी ने खिलाए लहू के फूल दिल पर अगरचे उस की इनायात भी नहीं