जब भी तुम को सोचा है सारा मंज़र बदला है जाते जाते ये किस ने नाम पवन पर लिक्खा है अँगारों के मौसम में जिस्मों का सा मेला है मेरी बस्ती में आ कर पागल दरिया ठहरा है ख़ुशियाँ हैं मेहमान मिरी ग़म मेरा हम-साया है तुम क्या जानो कश्मीरी दिल्ली में क्या होता है