जा रही है बहार फूलों की है क़बा तार तार फूलों की सींचिए पहले ख़ून-ए-दिल से चमन देखिए फिर बहार फूलों की उन के होंटों पे मुस्कुराती है मुस्कुराहट हज़ार फूलों की किस क़दर तल्ख़ ये हक़ीक़त है हम-नशीनी-ए-ख़ार फूलों की जिस को कहते हैं हम बहार-ओ-ख़िज़ाँ वो तो है जीत हार फूलों की सच बता क्यों ख़मोश है बुलबुल ऐ सबा राज़-दार फूलों की है ख़िज़ाँ में भी जैसे आवारा निकहत-ए-बे-क़रार फूलूँ की क्या क़फ़स में भी गुल खिलाएगी याद यूँ बार बार फूलों की 'ताहिरा' आज तेरे शे'रों में है महक बे-शुमार फूलों की