जाँ भी पुर-सोज़ हो अंजाम-ए-तमन्ना क्या है कोई बतलाए कि जीने का बहाना क्या है मेरी आँखों में नमी भी हो तो वल्लाह क्या है कोई भी जिस को न देखे वो तमाशा क्या है वो न चाहें तो मज़ा चाह में फिर ख़ाक मिले हम अगर चाहें भी बिल-फ़र्ज़ तो होता क्या है दिल सुलगता है सुलगता रहे जलता है जले ऐसी बातों से भला इश्क़ में बनता क्या है हम से मंसूब हैं उम्मीद-ओ-तमन्ना-ओ-ख़याल कोई देखे तो ज़रा आप का नक़्शा क्या है अक़्ल समझाएगी बहलाएगी फुसलाएगी दिल की छलनी से मगर देखिए छनता क्या है बे-ख़बर कितने थे 'मसऊद' रुमूज़-ए-ग़म से मैं जो रोया तो कहा दर्द से रोता क्या है