सफ़र में राह के आशोब से न डर जाना पड़े जो आग का दरिया तो पार कर जाना ये इक इशारा है आफ़ात-ए-ना-गहानी का किसी मक़ाम से चिड़ियों का कूच कर जाना ये इंतिक़ाम है दश्त-ए-बला से बादल का समुंदरों पे बरसते हुए गुज़र जाना तुम्हारा क़ुर्ब भी दूरी का इस्तिआरा है कि जैसे चाँद का तालाब में उतर जाना तुलू-ए-महर-ए-दरख़्शाँ की इक अलामत है उठाए शम-ए-यक़ीं उस का दार पर जाना थे रज़्म-गाह-ए-मोहब्बत के भी अजब अंदाज़ उसी ने वार किया जिस ने बे-सिपर जाना हर इक नफ़स पे गुज़रता है ये गुमाँ जैसे चराग़ ले के हवाओं से जंग पर जाना हम अपने इश्क़ की अब और क्या शहादत दें हमें हमारे रक़ीबों ने मो'तबर जाना मिरे यक़ीं को बड़ा बद-गुमान कर के गया दुअा-ए-नीम-शबी तेरा बे-असर जाना हर एक शाख़ को पहना गया नुमू का लिबास सफ़ीर-ए-मौसम-ए-गुल का शजर शजर जाना ज़माना बीत गया तर्क-ए-इश्क़ को 'तिश्ना' मगर गया न हमारा इधर उधर जाना