जाम दे और न कर वक़्त पे तकरार कि बस साक़िया अब्र उठा है ये धुआँ-धार कि बस क्या तमाशा है जो कल रात वो लाए तशरीफ़ बे-ख़ुदी ने ये लिया आन के यकबार कि बस क्यूँ न दिल ऐसे को दूँ मैं ने कल उन से जो कहा दर्द होता है मिरे दिल में ये ऐ यार कि बस सुनते ही हो कि हम आग़ोश कहा हँस के तुझे दर्द-ए-दिल की है दवा और भी दरकार कि बस रश्क से क्यूँ न जले मेहर-ए-दरख़्शाँ 'मारूफ़' है मिरे यार की ये गर्मी-ए-बाज़ार कि बस