जाम ख़ाली हैं मय-ए-नाब कहाँ से लाऊँ आप का दीदा-ए-पुर-आब कहाँ से लाऊँ कह सकूँ उन की निगाहों का तबस्सुम जिस को एक ऐसा दिल-ए-बे-ताब कहाँ से लाऊँ इश्क़ ख़ुद अपनी जगह पर है मुकम्मल लेकिन हुस्न का जौहर-ए-नायाब कहाँ से लाऊँ सामना तुम से मोहब्बत में जो हो जाए कभी इक नया आलम-ए-असबाब कहाँ से लाऊँ का'बा-ओ-दैर की राहों से गुज़र जाता हूँ महफ़िल-ए-नाज़ के आदाब कहाँ से लाऊँ एक ही बार नशेमन पे गिरी है बिजली बारहा गुलशन-ए-शादाब कहाँ से लाऊँ जो कभी उन की तवज्जोह का नतीजा थी 'शजीअ' फिर वही कैफ़ियत-ए-ख़्वाब कहाँ से लाऊँ