कुछ ख़याल-ए-दिल-ए-नाशाद तो कर लेना था वो नहीं था तो उसे याद तो कर लेना था कुछ उड़ानों के लिए अपने परों को पहले जुम्बिश ओ जस्त से आज़ाद तो कर लेना था फिर ज़रा देखते तासीर किसे कहते हैं दिल को भी शामिल-ए-फ़रियाद तो कर लेना था कोई तामीर की सूरत भी निकल ही आती पहले इस शहर को बर्बाद तो कर लेना था क़ैस के बाद ग़ज़ालाँ की तसल्ली के लिए 'हाशमी' दश्त को आबाद तो कर लेना था