जान ऐसे ख़्वाबों से किस तरह छुड़ाऊँ मैं शहर सो गया सारा अब किसे जगाऊँ मैं पाएमाल सब्ज़े पर देख कर गिरे पत्ते अब ज़मीन से ख़ुद को किस तरह उठाऊँ मैं इन अकेली रातों में इन अकेले रस्तों पर किस के साथ आऊँ मैं किस के साथ जाऊँ मैं एक ही सी तन्हाई एक ही सा सन्नाटा दश्त क्या है दिल क्या है क्या तुझे बताऊँ मैं देख कैसे दिन आए देख मैं न कहता था तू क़रीब भी आए और तुझे बुलाऊँ मैं आज सब में घुल-मिल जाऊँ मुझ को क्या ख़बर कल तक किस को याद आऊँ मैं किस को भूल जाऊँ मैं कितने काम दुनिया ने दे दिए मुझे 'जाफ़र' अश्क-ए-ग़म गिराऊँ मैं बार-ए-ग़म उठाऊँ मैं