जान दी जिस के लिए उस को ख़बर कोई नहीं अब खुला मुझ पर कि मर मिटना हुनर कोई नहीं आ ही पहुँची इक दरीचे से शुआ'-ए-आफ़्ताब मैं ये समझा था शब-ए-ग़म की सहर कोई नहीं आज किस की जान से खेलोगे ऐ चारागरो आज पहलू में मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर कोई नहीं ज़ाविया-हा-ए-नज़र में आह इतना इख़्तिलाफ़ गो तिरी तहरीर में ज़ेर-ओ-ज़बर कोई नहीं संग-रेज़ों से हुआ जाता है दामन तार तार जामा-ए-तहरीर में मेरे गुहर कोई नहीं बज उठी 'साबिर' हवा के ज़ोर से ज़ंजीर-ए-दर मैं ये समझा था कोई आया मगर कोई नहीं