जान दी उन पे मर-मिटे सिसके हैं हसीं लोग आश्ना किस के उन को सिखलाई हम ने आराइश रूह फूंकी है शख़्स-ए-बे-हिस के नाले पहुँचे ग़रीब के ता-अर्श बच गए डंके मर्द-ए-मुफ़्लिस के रख के ख़ंजर गले पे कहता है मार डाला अगर ज़रा खिसके बज़्म में जा मिली रफ़ीक़ों को काँटे बोए हैं बाग़ में बिस के क्या बताएँ कि किस के आशिक़ हैं वो नज़र आए तो कहें इस के नाला कर कर के दिल हुआ ख़ामोश रह गया है प फोड़ा रिस रिस के कोई का'बे गया हरम को कोई बंदे दरगाह अपने घर घिस के गेसू-ए-यार अगर है दाम-ए-बला ख़ाल-ए-मुश्कीं भी काँटें हैं बिस के छोड़ा पीरी में रूह ने तन-ए-ज़ार जामा उतरा बदन से घिस पिस के दीदा-ए-सुरमा-सा की उल्फ़त में 'मुंतही' ख़ाक हो गए पिस के