जताते रहते हैं ये हादसे ज़माने के कि तिनके जमा करें फिर न आशियाने के सबब ये होते हैं हर सुब्ह बाग़ जाने के सबक़ पढ़ाते हैं कलियों को मुस्कुराने के हज़ारों इश्क़-ए-जुनूँ-ख़ेज़ के बने क़िस्से वरक़ हुए जो परेशाँ मिरे फ़साने के हैं ए'तिबार से कितने गिरे हुए देखा इसी ज़माने में क़िस्से इसी ज़माने के क़रार-ए-जल्वा-नुमाई हुआ है फ़र्दा पर ये तूल देखिए इक मुख़्तसर ज़माने के न फूल मुर्ग़-ए-चमन अपनी ख़ुश-नवाई पर जवाब हैं मिरे नाले तिरे तराने के उसी की ख़ाक है माथे की ज़ेब बंदा-नवाज़ जबीं पे नक़्श पड़े हैं जिस आस्ताने के