जान-ए-हुस्न और काएनात-ए-रंग-ओ-बू क्या चीज़ है तेरी क़ुर्बत कह गई ऐ यार तू क्या चीज़ है वस्ल की बे-इंतिहा सरमस्तियों से पूछ लो कि सुरूर-आरा हुसूल-ए-जुस्तुजू क्या चीज़ है जान जाओगे तुम्हारा भी कभी टूटा जो दिल कि ग़म-ओ-दर्द-ए-शिकस्त-ए-आरज़ू क्या चीज़ है जितनी दिलबर की मिरे शक्ल-ओ-शमाइल है हसीं इतनी दिलकश और इतनी ख़ूब-रू क्या चीज़ है कैफ़ से लबरेज़ उस की चश्म-गीं के सामने साक़िया तेरा ये मय-परवर सुबू क्या चीज़ है चाँद है सूरज है फूल-ओ-ख़ुशबू है या है धनक बोलो मेरी जानाँ जैसी हू-ब-हू क्या चीज़ है मुझ से मत पूछो किसी से दिल लगा कर दोस्तो जान लो आवारगी-ए-कू-ब-कू क्या चीज़ है मैं ख़मोशी को ही बेहतर जानता था ऐ 'ज़की' उन से बातें करके समझा गुफ़्तुगू क्या चीज़ है