जान तन्हा अज़ाब कितने हैं मुझ पे उतरे इताब कितने हैं दिल लगा कर मिली है रुस्वाई मैं ये समझा सवाब कितने हैं ऐ मुसाफ़िर ज़रा धियान रहे रास्ते में सराब कितने हैं हिज्र की आग में जले हैं जो मुझ से ख़ाना-ख़राब कितने हैं बस तिरे इंतिज़ार में सूखे याद के अब गुलाब कितने हैं जिन की ता'बीर ही नहीं कुछ भी वो सुहाने से ख़्वाब कितने हैं इस जहाँ में हर इक क़दम 'शहज़ाद' लेने वाले हिसाब कितने हैं