तिरे जुनूँ में सहे जान पर सितम क्या क्या कि मैं ने देखे ज़माने के पेच-ओ-ख़म क्या क्या तिरे क़रीब न आता अगर ख़बर होती कि क़ुर्बतों में भी पोशीदा हैं अलम क्या क्या बिछड़ के तुझ से बहुत दूर मैं चला आया उठाए फिरता हूँ फिर भी मैं तेरे ग़म क्या क्या तू जानता ही नहीं क्या है ये मोहब्बत भी रह-ए-वफ़ा में उठाए हैं दुख सनम क्या क्या हर एक हाल में 'शहज़ाद' मैं करूँगा वफ़ा बला से राह में आएँगे ज़ेर-ओ-बम क्या क्या