जाने दो इन नग़्मों को आहंग-ए-शिकस्त-ए-साज़ न समझो दर्द-भरी आवाज़ तो सुन लो दर्द-भरी आवाज़ न समझो जाओ बहारो जाओ जाओ वीरानों के पास न आओ आलम-ए-शौक़-ए-आसूदा को हसरत का ग़म्माज़ न समझो ज़ख़्म लगाना आता है इन फूलों से नाज़ुक लोगों को भी बेहतर है इन फूल से नाज़ुक लोगों के अंदाज़ न समझो ख़ामोशी के सहराओं में भटके हुए संगीत न जानो तार-ए-नफ़स के नग़्मे हैं ये इन को मिरी आवाज़ न समझो