शाम-ए-वादा का ढल गया साया आने वाला अभी नहीं आया ज़िंदगी के ग़मों को अपना कर हम ने दर-अस्ल तुम को अपनाया जुस्तुजू ही दिलों की मंज़िल थी हम ने खो कर तुझे, तुझे पाया ज़िंदगी नाम है जुदाई का आप आए तो मुझ को याद आया हम ने तेरी जफ़ा के पर्दे में ख़ुद भी दिल पर बहुत सितम ढाया ज़िंदगी से तो ख़ैर शिकवा था मुद्दतों मौत ने भी तरसाया 'शाद' अहल-ए-तरब को भी अक्सर मेरी अफ़्सुर्दगी पे प्यार आया