जाने से पहले ख़बर-दार तो कर सकता था मुझ को इस के लिए तय्यार तो कर सकता था मैं निहारूँ तुझे खुल कर न सुहूलत थी मुझे कम से कम खुल के तू दीदार तो कर सकता था ज़र्द जज़्बात पे इक लम्स का जादू कर के मेरी हस्ती को वो गुलज़ार तो कर सकता था जिस ने हर पल किया दामन को मिरे ख़ाक-आलूद आइना सा मिरा किरदार तो कर सकता था जाने क्यों इश्क़ को पोशीदा रखा है उस ने वो अगर चाहता इज़हार तो कर सकता था कोई मुश्किल थी उसे प्यार जताने में अगर प्यार की मीठी सी तकरार तो कर सकता था वो गया रूठी हुई छोड़ के मुझ को 'सीमा' मानने को मुझे लाचार तो कर सकता था