जाने शब-ए-फ़िराक़ में क्या याद आ गया दिल यूँ तड़प उठा कि ख़ुदा याद आ गया बाद-ए-सबा की छेड़ से शरमाए फूल जब चेहरे का उस के रंग-ए-हया याद आ गया आई शब-ए-फ़िराक़ जो महकी हुई सबा उस वक़्त क़ुर्ब-ए-ज़ुल्फ़-ए-दुता याद आ गया इक बेवफ़ा से तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ न कर सके हर बार हम को अह्द-ए-वफ़ा याद आ गया क्यों अश्क मरने वालों की आँखों में आ गए क्या लुत्फ़-ए-ज़ीस्त वक़्त-ए-क़ज़ा याद आ गया छेड़ा है जब किसी ने किसी बेवफ़ा का ज़िक्र हम को किसी का अह्द-ए-वफ़ा याद आ गया दश्त-ए-जुनूँ में पैरों से ख़ूँ रिसता देख कर हाथों का उस के रंग-ए-हिना याद आ गया जब भी चमन में फूल खिलाए बहार ने उस कज-अदा का हुस्न-ए-क़बा याद आ गया अंजाम-ए-इश्क़ ने जो सताया कभी 'ज़फ़र' आग़ाज़-ए-इश्क़ का भी मज़ा याद आ गया