जान-ए-बहार-ए-ज़िंदगी आँखें ज़रा मिलाए जा गुलशन-ए-क़ल्ब पर मिरे बर्क़-ए-नज़र गिराए जा अपना मुझे बनाए जा दिल में मिरे समाए जा बंद-ए-हिजाब तोड़ दे नक़्श-ए-दुई मिटाए जा मुतरिब-ए-ख़ुश-नवा न जा ज़ख़्म-ए-जिगर कुरेद कर छेड़ा है जिस पे साज़-ए-दिल नग़्मा वही सुनाए जा मौसम-ए-गुल का वास्ता अब्र-ए-बहार की क़सम जब तक गिरूँ न झूम कर साक़ी मुझे पिलाए जा माना कि थक गए हैं पाँव हौसला-ए-शबाब के फिर भी ठहर के दम न ले आगे क़दम बढ़ाए जा ठेस लगे लगा करे दर्द उठे उठा करे आँखों से ख़ूँ बहा करे फिर भी तू मुस्कुराए जा नाज़-ओ-नियाज़-ए-इश्क़ का ख़त्म न हो ये सिलसिला 'नाज़िश'-ए-ख़स्ता-हाल को हँस हँस के तू रुलाए जा