जान-ए-जाँ मेरी ये जाँ का मसअला है सिर्फ़ तेरी एक हाँ का मसअला है कुछ तो मेरा भी निशाना है नहीं ठीक और कुछ तीर-ओ-कमाँ का मसअला है ये ज़मीन-ओ-आसमाँ पक्के अदू हैं ख़ल्क़ उन के दरमियाँ का मसअला है जो तिरी बाएँ हथेली पर दिखा था ये लड़ाई उस निशाँ का मसअला है ये फ़िराक़ आशुफ़्तगी गिर्या ये वहशत एक क़ल्ब-ए-ना-तवाँ का मसअला है मैं भी लग-भग तुझ से बाहर आ चुका हूँ ख़ैर तू भी अब फुलाँ का मसअला है