जानें क्यों लोग मोहब्बत की ज़बाँ भूल गए दर्द-ए-दिल भूल गए आह-ए-तपाँ भूल गए अब तो मिलते नहीं आशुफ़्ता-ए-सर रस्ते में मंज़िल-ए-इश्क़-ओ-जुनूँ रह-गज़राँ भूल गए हम दिवाने थे चले आए बयाबाँ की तरफ़ वो जो हुशियार थे काँटों का जहाँ भूल गए कितने नादाँ थे धुँदलकों से बहलने वाले आशिक़ी भूल गए सोज़-ए-निहाँ भूल गए मो'जिज़ा होती है कहते हैं मोहब्बत की कसक जाने हम लोग उस अफ़्सूँ को कहाँ भूल गए चाक-दामानी-ए-दिल अपना मुक़द्दर ठहरी मेरे दामन का रफ़ू बख़िया-गराँ भूल गए कोई 'नाज़िश' को जो पूछे है तो क्या बतलाएँ दिल-शिकस्ता था बहुत जाने कहाँ भूल गए