जान-ए-नशात हुस्न की दुनिया कहें जिसे जन्नत है एक ख़ून-ए-तमन्ना कहें जिसे उस जल्वा-गाह-ए-हुस्न में छाया है हर तरफ़ ऐसा हिजाब चश्म-ए-तमाशा कहें जिसे ये असल ज़िंदगी है ये जान-ए-हयात है हुस्न-ए-मज़ाक़ शोरिश-ए-सौदा कहें जिसे मेरे विदा-ए-होश को इतना भी है बहुत ये आब ओ रंग हुस्न का पर्दा कहें जिसे अक्सर रहा है हुस्न-ए-हक़ीक़त भी सामने इक मुस्तक़िल सराब-ए-तमन्ना कहें जिसे अब तक तमाम फ़िक्र ओ नज़र पर मुहीत है शक्ल-ए-सिफ़ात मानी-ए-अशिया कहें जिसे हर मौज की वो शान है जाम-ए-शराब में बर्क़-ए-फ़ज़ा-ए-वादी-ए-सीना कहें जिसे ज़िंदानियों को आ के न छेड़ा करे बहुत जान-ए-बहार निकहत-ए-रुस्वा कहें जिसे इस हौल-ए-दिल से गर्म-रौ-ए-अरसा-ए-वजूद मेरा ही कुछ ग़ुबार है दुनिया कहें जिसे सरमस्तियों में शीशा-ए-मय ले के हाथ में इतना उछाल दें कि सुरय्या कहें जिसे शायद मिरे सिवा कोई उस को समझ सके वो रब्त-ए-ख़ास रंजिश-ए-बेजा कहें जिसे मेरी निगाह-ए-शौक़ पे अब तक है मुनअकिस हुस्न-ए-ख़याल शाहिद-ए-ज़ेबा कहें जिसे दिल जल्वा-गाह-ए-हुस्न बना फ़ैज़-ए-इश्क़ से वो दाग़ है कि शाहिद-ए-राना कहें जिसे 'असग़र' न खोलना किसी हिकमत-मआब पर राज़-ए-हयात साग़र ओ मीना कहें जिसे