जब आँख बंद होगी दीदार देख लेंगे कब तक छुपोगे हम से ऐ यार देख लेंगे खिड़की क़फ़स की चाहे सय्याद बंद कर दे हम रौज़न-ए-क़फ़स से गुलज़ार देख लेंगे वाइ'ज़ न मय-कदे में शेख़ी बघार आ कर साक़ी अलग रहेगा मय-ख़्वार देख लेंगे कूचे में उन बुतों के ऐ 'क़द्र' फिर फिरा कर हम क़ुदरत-ए-ख़ुदा के असरार देख लेंगे