लुट गया दिल कहाँ नहीं मालूम क्या हुआ है ज़ियाँ नहीं मालूम अब क़फ़स में ही रहने दे सय्याद था कहाँ आशियाँ नहीं मालूम तू ही आ कर सिखा दे ओ बुलबुल मुझ को तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ नहीं मालूम आप ही से फ़क़त है दिलचस्पी और दिलचस्पियाँ नहीं मालूम वाए तक़दीर क्या क़यामत है जाए दर्द-ए-निहाँ नहीं मालूम याद होने लगी कहाँ अपनी आईं क्यूँ हिचकियाँ नहीं मालूम मुझ को तेरी कहानी आती है और कोई दास्ताँ नहीं मालूम मैं अज़ल से फ़िदाई हूँ जिस का उस का नाम-ओ-निशाँ नहीं मालूम पैरव-ए-मीर हूँ मैं'' ऐ 'नादिर' ग़ैर को ये ज़बाँ नहीं मालूम