जब आँख उस सनम से लड़ी तब ख़बर पड़ी ग़फ़लत की गर्द दिल से झड़ी तब ख़ैर पड़ी पहले के जाम में न हुआ कुछ नशा तो आह दिलबर ने दी तब उस से कड़ी तब ख़बर पड़ी लाए थे हम तो उम्र पटा याँ लिखा वले जब सियाही पर सफ़ेदी चड़ी तब ख़बर पड़ी दाढ़ें लगीं उखड़ने को दंदाँ हुए शहीद मज्लिस में चल-ब-चल ये पड़ी तब ख़बर पड़ी बिन दाँत भी हँसे प जब आँखें चलीं तो आह! जब लागी आँसूओं की झड़ी तब ख़बर पड़ी शहतीर सा वो क़द था सो ख़म हो के झुक गया गिरने लगी कड़ी पे कड़ी तब ख़बर पड़ी नीचा दिखाया शेर ने तो भी ये समझे झूट जब चाब ली गले की नड़ी तब ख़बर पड़ी जब आए उस गढ़े में 'नज़ीर' और हज़ार मन ऊपर से आ के ख़ाक पड़ी तब ख़बर पड़ी