जब अपनी आँखों से अश्कों का क़ाफ़िला निकला किनारे टूटे तो दरिया का हौसला निकला वो मेरी बज़्म में आए रक़ीब के हमराह चलो कि मिलने का कोई तो सिलसिला निकला मिलें न आज भी बच्चों को रोटियाँ शायद वो घर से सुब्ह यही सोचता हुआ निकला वो इक वरक़ कि मिरा नाम जिस पे लिक्खा था तिरी किताब में वो क्यों मिटा मिटा निकला मैं अपने चेहरे पे ख़ुशियाँ सजा तो लाया मगर हर एक शख़्स मिरे ग़म से आश्ना निकला मैं अपना हाल सुनाने लगा जिसे 'राही' तो उस का दर्द मिरे दर्द से सिवा निकला