किसी के ग़म को गले से लगाए बैठे हैं हम अपने सारे ग़मों को भुलाए बैठे हैं सुकून-ए-दिल के लिए आज तेरे दीवाने तिरे ख़याल की दुनिया सजाए बैठे हैं स्याह रात है वो आएँ तो उजाला रहे इसी उम्मीद पे शमएँ जलाए बैठे हैं कहाँ से लाएँ वो तिनके चुनें तो किस के लिए जो ख़ुद ही अपना नशेमन जलाए बैठे हैं अब उन की सम्त भी हो जाए काश नज़र-ए-करम जो लोग देर से महफ़िल में आए बैठे हैं करें तो किस पे करें ए'तिबार ऐ 'राही' हर एक दोस्त को हम आज़माए बैठे हैं