जब बयाँ करोगे तुम हम बयाँ में निकलेंगे हम ही दास्ताँ बन कर दास्ताँ में निकलेंगे इश्क़ हो मोहब्बत हो प्यार हो कि चाहत हो हम तो हर समुंदर के दरमियाँ में निकलेंगे रात का अंधेरा ही रात में नहीं होता चाँद और सितारे भी आसमाँ में निकलेंगे देख तो कभी शब को कारवाँ सितारों का नूर के कई महमिल कहकशाँ में निकलेंगे बोलियाँ ज़माने की मुख़्तलिफ़ तो होती हैं लफ़्ज़ प्यार के लेकिन हर ज़बाँ में निकलेंगे काट कर बदन सारा क़ाश क़ाश में झांकें आप के हयूले ही क़ल्ब-ओ-जाँ में निकलेंगे ख़ाक का समुंदर भी क्या अजब समुंदर है इस जहाँ में डूबेंगे उस जहाँ में निकलेंगे क़िस्सा-ए-सुख़न-गोई जब 'अदीम' आएगा हम भी वाक़िआ बन कर दास्ताँ में निकलेंगे सिर्फ़ सब्ज़ पत्ते ही पेड़ पर नहीं होते कुछ न कुछ परिंदे भी आशियाँ में निकलेंगे