जो दिया तू ने हमें वो सूरत-ए-ज़र रख लिया तू ने पत्थर दे दिया तो हम ने पत्थर रख लिया सिसकियों ने चार सौ देखा कोई ढारस न थी एक तन्हाई थी उस की गोद में सर रख लिया घुट गया तहज़ीब के गुम्बद में हर ख़्वाहिश का दम जंगलों का मोर हम ने घर के अंदर रख लिया मेरे बालों पे सजा दी गर्म सहराओं की धूल अपनी आँखों के लिए उस ने समुंदर रख लिया दर्ज़ तक से अब न फूटेगी तमन्ना की फुवार चश्मा-ए-ख़्वाहिश पे हम ने दिल का पत्थर रख लिया वो जो उड़ कर जा चुका है दूर मेरे हाथ से उस की इक बिछड़ी निशानी ताक़ में पर रख लिया दीद की झोली कहीं ख़ाली न रह जाए 'अदीम' हम ने आँखों में तिरे जाने का मंज़र रख लिया फेंक दें गलियाँ बिरुन-ए-सहन सब इस ने 'अदीम' घर कि जो माँगा था मैं ने वो पस-ए-दर रख लिया