जब भी आता है वो मेरे ध्यान में फूल रख जाता है रोशन-दान में घर के बाम-ओ-दर नए लगने लगे हुस्न ऐसा था मिरे मेहमान में तेरा चेहरा आइने के सामने और आईना नए इम्कान में अक्स तेरे तेरी ख़ुशबू तेरे रंग बस यही कुछ है मिरे सामान में जिस्म-ओ-जाँ को ताज़ा मौसम मिल गए जल गया मैं तेरे आतिश-दान में जो सितारा परवरिश पाता रहा वो मिला है प्यार के रुज्हान में तितलियाँ कमरे के अंदर आ गईं एक फूल ऐसा भी था गुल-दान में आँधियों में भी उड़ाता है मुझे कौन है ये मेरे जिस्म-ओ-जान में धड़कनें तेरी हैं बे-आवाज़ क्यूँ क्या नहीं हूँ मैं तिरे इम्कान में जब दरख़्त अँगनाइयों के कट गए धूप उतर आई है हर दालान में अजनबी ख़्वाबों का सूरत-गर हूँ मैं और मैं गुम हूँ तिरी पहचान में