किसी के इश्क़ में ये हाल-ए-ज़ार रहता है सुकून पा के भी दिल बे-क़रार रहता है वो मय-कदे में बहुत बा-वक़ार रहता है जो बे-ख़ुदी में भी कुछ होश्यार रहता है मुझे बहार-ए-गुलिस्ताँ पे नाज़ हो क्यूँकर मिरी नज़र में मआल-ए-बहार रहता है दिल-ए-हज़ीं ग़म-ए-दौराँ से आश्ना न सही तुम्हारे ग़म से मगर हम-कनार रहता है कोई तो बात है ऐसी कि उन के वादों पर ख़ुलूस-ए-दिल से मुझे ए'तिबार रहता है ब-फ़ैज़-ए-जोश-ए-जुनूँ अब मैं उस मक़ाम पे हूँ जहाँ जुनूँ ही मिरा राज़-दार रहता है ये जानता हूँ न आए हैं वो न आएँगे 'नसीम' फिर भी मुझे इंतिज़ार रहता है