जब भी गर्दिश में जाम आया है रिफ़अ'तों का पयाम आया है सर निगूँ हो रहे हैं पैमाने फिर कोई तिश्ना-काम आया है ज़ेहन ने जब नवेद-ए-ज़ीस्त न दी दिल-ए-ना-काम काम आया है भूल कर भी न आप ने पूछा क्यों कोई ज़ेर-ए-दाम आया है लोग कहते हैं चाँदनी शब है कौन बाला-ए-बाम आया है भर गया ज़िंदगी का पैमाना आज वो भर के जाम लाया है मेरी मंज़िल हों चाँद और तारे ये तो सौदा-ए-ख़ाम आया है