जब भी हँसी की गर्द में चेहरा छुपा लिया बे-लौस दोस्ती का बड़ा ही मज़ा लिया इक लम्हा-ए-सुकूँ तो मिला था नसीब से लेकिन किसी शरीर सदी ने चुरा लिया काँटे से भी निचोड़ ली ग़ैरों ने बू-ए-गुल यारों ने बू-ए-गुल से भी काँटा बना लिया 'असलम' बड़े वक़ार से डिग्री वसूल की और इस के बा'द शहर में ख़्वांचा लगा लिया