जब भी ख़ल्वत में मिरी शम्अ' जली शाम के बाद दिल के दरवाज़े पे दस्तक सी हुई शाम के बाद चाँद तारों की जो महफ़िल थी सजी शाम के बाद मुझ को महसूस हुई तेरी कमी शाम के बाद दिन तो ख़ामोश गुज़र जाता है अपना लेकिन आ ही जाती है मगर याद तिरी शाम के बाद जान-ए-मन कुछ तो इलाज-ए-ग़म-ए-दौराँ करना वर्ना बढ़ जाएगी अफ़्सुर्दा-दिली शाम के साथ शैख़ की बात पे जो कर ली थी तौबा हम ने आप के आते ही वो टूट गई शाम के बाद वो भी अब तक नहीं आए न पयाम आया है फ़ोन की लाइन भी फिर टूट गई शाम के बाद मेरी तन्हाई भी 'शाहीन' बनी है दुश्मन मुझ को नागिन की तरह डसने लगी शाम के बाद