ज़ीस्त को चाहिए बस तेरा सहारा जानाँ ये सहारा ही तो है एक हमारा जानाँ बंदा-पर्वर मिरी तक़दीर सँवर जाएगी इक तिरी चश्म-ए-करम से है गुज़ारा जानाँ इश्क़ का रंज-ओ-अलम दिल में लिए बैठे हैं तुझ से शिकवा तो नहीं कोई हमारा जानाँ बहर-ए-इस्याँ में हूँ डूबा हुआ मैं सर-ता-पा तेरी बख़्शिश का मिले मुझ को किनारा जानाँ आतिश-ए-हिज्र ने गुलशन को किया है वीरान बारिश-ए-वस्ल की हाजत है दोबारा जानाँ बाज़ी-ए-इश्क़ में दिल हार गया है 'उस्मान' हार कर जीत कहाँ उस को गवारा जानाँ