जब भी उस की मिसाल देती हो जान मेरी निकाल देती हो पहले सुनती हो ग़ौर से बातें फिर सलीक़े से टाल देती हो सब ख़ताएँ तुम्हारी अपनी हैं फिर भी क़िस्मत पे डाल देती हो जब भी करना हो फ़ैसला कोई एक सिक्का उछाल देती हो जान-ए-'जाज़िब' तुम्हारा क्या होगा दुश्मनों को भी ढाल देती हो