आह लब तक दिल-ए-नाकाम न आने पाए ज़ब्त-ए-ग़म पर कोई इल्ज़ाम न आने पाए मैं सुनाता तो हूँ रूदाद-ए-मोहब्बत लेकिन दरमियाँ में जो तिरा नाम न आए पाए तुम ने चाहा भी तो क्या दुश्मन-ए-राहत बन कर कोई दुनिया में मिरे काम न आने पाए महफ़िल-ए-इश्क़ में छा जाएगा इक सन्नाटा यूँ तड़पता हूँ कि आराम न आने पाए देख पाए न सितारों की नज़र भी तुम को आओ इस तरह कि इल्ज़ाम न आने पाए मंज़िल-ए-शौक़ में कहता है जुनूँ मुझ से 'अदीब' दिल में अंदेशा-ए-अंजाम न आने पाए