जब चाँदनी में चाँद से नज़रें मिलाएँगे परियों की तुम को एक कहानी सुनाएँगे तकती है मुझ को हुस्न के पर्दे से ख़ुद हया आदाब-ए-इश्क़ आप क्या मुझ को सिखाएँगे चलता है साथ साथ ख़मोशी का इक हुजूम थक कर गिरेंगे हम तो सदाएँ लगाएँगे छत पर टहल रही है अजब सर-फिरी हवा जुगनू अँधेरी रात को रस्ता दिखाएँगे फिर चल रही है मेरी भी चिड़ियों से गुफ़्तुगू फ़स्ल-ए-बहार आई तो नगमें सुनाएँगे अब तो कहीं 'अबीर' उदासी से मिल गले वक़्त-ए-शबाब हम भी कई गुल खिलाएँगे