जागती आँखों में था अम्बर खुला सो गए तो ख़्वाब में इक दर खुला नाम जब दिल ने पुकारा या-अली तो सभी पर मा'नी-ए-लश्कर खुला बे-ख़याली में छुआ उस ने मुझे हुस्न का इक दर मिरे अन्दर खुला खींच लूँगा धूप की तस्वीर मैं रह गया घर में अंधेरा गर खुला ज़िंदगी में रंग भरने हों अगर रक्खो अपने सामने मंज़र खुला ख़्वाहिशें लेने लगीं अंगड़ाइयाँ जब तिरा साया दरीचे पर खुला साथ रह कर भी रहे हम अजनबी एक मुद्दत बाद ये हम पर खुला ख़ूबसूरत फूल हैं इस पेड़ के या कोई बैठा है बाल-ओ-पर खुला