जब दाँत खोल कर लब-ए-साहिल वो हँस पड़े दरिया में मारे शर्म के गौहर पलट गया हम समझे बज़्म-ए-बादा में गर्दिश नसीब की मुँह तक हमारे आ के जो साग़र पलट गया उस जान-ए-जाँ ने ग़ैर की जानिब जो रुख़ किया सीने में दिल मिरा भी बराबर पलट गया कूचे से ज़ुल्फ़-ए-यार के महरूम मैं फिरा ज़ुल्मात में नसीब-ए-सिकंदर पलट गया दौलत-कदे में वो शह-ए-ख़ूबाँ न जब मिला दे कर दुआएँ उस का क़लंदर पलट गया वो बद-नसीब हूँ मिरे बहकाने के लिए मानिंद-एأग़ोल राह में रहबर पलट गया मैं ज़हर-ए-इश्क़-ए-ज़ुल्फ़ से 'शैदा' बचूँगा क्या मुझ को ये साँप काट के यकसर पलट गया