हुआ है सर में सौदा फिर किसी ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ का न दामन की ख़बर हम को न होश अपने गरेबाँ का कभी जो देख लें महफ़िल में वो इन तिरछी नज़रों से नज़र आए समाँ उस वक़्त फिर गंज-ए-शहीदाँ का वो करते तो हैं वा'दा रोज़ लेकिन वाए-नाकामी नहीं है पास उन को कुछ भी अपने अहद-ओ-पैमाँ का मुझे दफ़नाने वो आए तो मदफ़न में ये शोर उट्ठा तिरे मरने से जागा बख़्त है गोर-ए-ग़रीबाँ का तअ'ज्जुब क्या पसीजे एक दिन दिल उस सितमगर का अगर रो कर सुना दूँ उस को क़िस्सा शाम-ए-हिज्राँ का मिरी जाँ का है तालिब वो कि दिल से फिर गया अब दिल ज़रा देखो तो 'शैदा' मो'जिज़ा उस आफ़त-ए-जाँ का