जब घटा झूम के आती है तो पी लेता हूँ फ़स्ल-ए-गुल धूम मचाती है तो पी लेता हूँ चाँदनी में तो कभी छाँव में तारों की कभी रात हँस हँस के बुलाती है तो पी लेता हूँ या कभी तेरी जुदाई की सुलगती हुई शाम रूह में आग लगाती है तो पी लेता हूँ जब कभी जश्न मनाता हूँ ग़म-ए-दौराँ का मय भी उस जश्न में आती है तो पी लेता हूँ कभी हालात की तल्ख़ी तो कभी फ़िक्र-ए-जहाँ ग़म-ज़दा दिल को दुखाती है तो पी लेता हूँ मैं कभी ख़ुद नहीं पीता कि ख़ुदा शाहिद है आसमाँ से उतर आती है तो पी लेता हूँ अपनी हर शाम तो बे-मय ही गुज़रती है 'पयाम' बज़्म-ए-मय-ख़ाना पिलाती है तो पी लेता हूँ