इश्क़ रुस्वा सर-ए-बाज़ार हुआ है क्या क्या रोज़ जश्न-ए-रसन-ओ-दार हुआ है क्या क्या ता'ना-ओ-तंज़ की पर्वा न मलामत का ख़याल जी तिरे इश्क़ में नाचार हुआ है क्या क्या कितने ही नासेह-ए-मुश्फ़िक़ फिरे नाकाम न पूछ चूर आईना-ए-पिंदार हुआ है क्या क्या तेरी फ़ुर्क़त तिरा मिलना तो बड़ी बात न थी काम जो सहल था दुश्वार हुआ है क्या क्या हम जो उस बज़्म को ठुकरा के चले आए हैं हम पे नाज़ाँ दिल-ए-ख़ुद्दार हुआ है क्या क्या फ़िक्र-ए-आग़ाज़ 'पयाम' और न अंजाम का ग़म हम पे एहसान-ए-ग़म-ए-यार हुआ है क्या क्या